રવિવાર, 29 જાન્યુઆરી, 2012

आज तक न्यूज़ चेनल और महात्मा गांधी का वध


कल रात  आज तक न्यूज़ चेनल पर महात्मा गाँधी के वध के बारे में एक विशेष कार्यक्रम प्रशारित हुआ. कार्यक्रम देखते देखते एक पुस्तक के कुछ पन्ने मेरी नजरो के सामने आने लगे. आज तक महात्मा गांधी के वध के बारे में इस तरह से जानकारी पेस कर रहा था मानो उसने कुछ नया शोध किया हो. उसने एक नाट्य रूपांतर पेस किया जिसका जिक्र 'फ्रीडम एट मीड नाईट' पुस्तक के  आखरी पन्नो में फ्रेंच लेखक लेरी कोलिन्स और देमोनिक लेपियर ने किया है. ये एक नहीं दो लेखक है. जिन्होंने इस पुस्तक में भारतीय इतिहास का रस प्रद शैली में वर्णन किया है. उपन्यास की तरह लिखी गयी इस पुस्तक के हीरो है महात्मा गांधी. मै पुस्तक की तारीफ बिलकुल भी नहीं करना चाहता और न प्रचार करना चाहता हु.

आज तक वही दिखा रहा था जो इस पुस्तक में उल्लेखित है. पुस्तक की तरह चेनल ने भी वो नहीं दिखाया जो दिखाना चाहिए. महात्मा की हत्या की साजिश पेश की गई वजह नहीं. उन तथ्यों को नज़र अंदाज़ कर दिया गया जिसकी वजह से नाथू राम गोडसे ने इस वध कर्म को अंजाम दिया था. ये कभी सामने लायेंगे भी नहीं और हमें अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए. दिमाग घूम जाता है जब इस पुस्तक में वीर सावरकर के ऊपर तथ्य हीन आरोप लगाकर गन्दी भाषा का प्रयोग किया जाता है. मैंने एक गुजराती ब्लॉग में भी  देखा था की उन महाशय ने उन पन्नो में से कोपी कर के अपने ब्लॉग में पोस्ट डाल दी मानो कोई बहोत बड़ा शोध किया हो.

वीर सावरकर और गांधी जी के बीच कोई तुलना हो ही नहीं शकती, ये संभव ही नहीं है. वो वीर और विद्वान्   है और हमेशा रहेंगे. सावरकर ने जितना लिखा है उतना तो महात्मा ने पढ़ा भी नहीं होगा.सावरकर ने जो यातनाए सही है वो महात्मा ने सही होती तो नाथू राम को फांसी पर लटकाना नहीं पड़ता.  काश इस राष्ट्र ने महात्मा के चरखे के बजाय सावरकर के  शस्त्र को अपनाया होता, तो आज ये आज तक और कल तक और परसोतक और विदेश लेखक हमारे वीर पुरुषो की धज्जीया नहीं उडा पाते.

શનિવાર, 28 જાન્યુઆરી, 2012

मै और मेरी पत्रकारिता...(टर्निंग पॉइंट ऑफ़ माय लाइफ १)

तृतीय वर्ष बी ए के इम्तिहान के बाद रात रात भर जागा करता था और सोचता रहता था के आगे क्या होगा? एम ए किया जाये या कुछ और? सारा दिन पुस्तकालय और इधर उधर घुमने में बिताया करता था ताकी नकारात्मक विचार हावी न हो जाये. तब मेरी आयु १९ साल की थी.
और वो दिन आ गया जिसका इंतजार था. रिजल्ट आ गया. द्वितीय श्रेणी में पास भी हो गया पर वो दिमाग से निकल नहीं रहा था-आगे क्या? मै पुस्तकालय से अपनी मार्क-सीट लेकर लौट ही रहा था तब मेरे एक दोस्त ने मेरे हाथ में एक अखबारी विज्ञापन का कटिंग थमा दिया और वो अपनी मार्क-सीट लेने चला गया. वो कटिंग कटिंग नहीं मेरे जीवन का टर्निंग पॉइंट था जिसकी वजह से मै पत्रकार बन गया. ११ साल बीत गए इस क्षण को और वो मित्र का कोई संपर्क नहीं है और करना भी नहीं चाहता, सिर्फ एक बार मिला था वो-जाना की बी ऐ के बाद उसने एम् ऐ और एमफिल किया और एक स्कुल में सेवारत है और मै...???  

  गुजरात विद्यापीठ (अमदावाद) में पत्रकारिता की  पढ़ाई करते समय मैंने तुरंत ही भाप लिया की ये सब पढ़ाई इम्तहान रिलेटेड ही है और नाही कुछ ज्ञानलक्षी है और न प्रेक्टिकली. ढेरो अखबार, मैगज़ीन और पुस्तक लायब्रेरी में भरे पड़े थे पर पढने के लिए वक्त ही नहीं मिल पा रहा था क्योंकी सुबह से साम तक सिर्फ लेक्चर अटेंड करने पड़ते थे.  और मै वक्त निकालने लगा लेक्चर छोड़ के... अभ्यास करता रहा, समजता गया और लिखने लगा. मेरा प्रथम लेख 'मुंबई समाचार' दैनिक में प्रगट हुआ. और उसके बाद बहोत से लेख अन्य अखबारों में प्रगट हुए. तब सोचता था  की मेरी ये लेखनी ही मुझे आगे ले जायेगी पर तब पता नहीं था की ये लेखनी मेरे माथे पे एक लेबल  चिपका देगी और मेरा करियर तूफानी हो जायेगा. मै तो वही लिखता था जो मुझे सत्य लगता था पर पढ़ने वाले को ये कोमवादी लगता था.हाला की मै किसी भी संगठन में सामिल नहीं था और आज भी नहीं हूँ. मै तो यही सोच के पत्रकारिता के क्षेत्र में आया था की पढ़ाई के बाद कोई भी अखबारी ऑफिस में छोटी मोटी नौकरी मिल जाएगी और गुजारा हो  जाएगा. पर होनी को कुछ और ही मंजूर था. ये क्षेत्र मेरे लिए इतना वक्र होगा तब मुझे ये पता नहीं था.

 पढ़ाई के दौरान हमसे एक सर्वे करवाया गया था, हाला की इसमें विद्या पीठ का कुछ लेना देना नहीं था. ये सर्वे एक अंग्रेजी मैगज़ीन और एक न्यूज़ चेनल के लिए एक सर्वे एजंसी ने करवाया था. पैसे देने का वादा भी किया था पर परिणाम उनके विचार से विपरीत आया तो आधे पैसे दे कर गायब हो गए. हुआ यु की तीन तीन विद्यार्थियो की टीम बनाकर एक प्रश्नावली बनवाकर गुजरात के विभिन्न मत क्षेत्रो में हमें भेजा गया. विद्यर्थीओने महेनत और लगन से काम किया. प्रश्नावलिमे सेंसेटिव प्रश्न थे फिर भी बिना शिकायत काम पूरा किया और परिणाम बी जे पी के समर्थन में जा रहा था और उनको शंका हुई की ये हमने गलत किया है. फिर उन्होंने क्रोस चेकिंग करवाई. टीम में अदला बदली करवाके सबको अलग अलग जगह भेजा गया. परिणाम फिर भी भाजपा के पक्षमे जा रहा था और हमें पुरे पैसे नहीं मिले और न किसी का उल्लेख भी किया गया. (वो गुजरात विधान सभा चुनाव २००२ का प्रे पोल था) 

(अगर आपको मेरा आत्म कथानक पसंद आया हो तो जरूर बताए तभी ये आगे जारी रहेगा और मेरा होंसला बढेगा क्योकि आगे सेंसेटिव मुद्दे भी  आयेंगे - गोधराकांड के बाद गुजरात विधानसभा चुनाव २००२, मेरे थीसिस को जान बुज के कम मार्क्स देना)



શુક્રવાર, 13 જાન્યુઆરી, 2012

Now I am writing in Hindi


आज से हिंदी में लिखने का प्रारंभ. जय हिंदी. ॐ सरस्वते नमः

वैसे तो मैंने कभी हिंदी में इस तरह से कुछ लिखा नहीं है. हिंदी में पढ़ा बहुत है. हिंदी से गुजराती में अनुवाद का

काम भी किया है. गुजराती साप्ताहिक साधना में काम करता था तब पांचजन्य के बहोत से लेखो का गुजराती में

अनुवाद किया था पर हिंदी में ज्यादा कुछ लिखा नहीं और आज से  हिंदी में लिखना शुरू कर रहा हु. अगर

कुछ भाषाकिय भूल हो तो सुजाव मिलेगा ऐसी अपेक्षा रखता हु.




दिव्याजी का बहोत बहोत धन्यवाद. इन्ही की वजह से मुझे हिंदी में लिखने की प्रेरणा मिली है. और सुरेश

चिपलूनकर का भी आभार जिन्होंने मुझे उनके  एक 'लेख सोनिया गाँधी के बारे में आप कितना जानते हो?' का

गुजराती में अनुवाद करने की अनुमति दी. मेरे सभी हिंदी भाषी मित्रो का तहे दिल से आभार. आप सब मेरा

होसला बढ़ाते रहेना और मय गुजराती अस्मिता को राष्ट्र भाषा में आपके सामने लाता रहूँगा.

जय हिंद

वन्दे मातरम