कल रात आज तक न्यूज़ चेनल पर महात्मा गाँधी के वध के बारे में एक विशेष कार्यक्रम प्रशारित हुआ. कार्यक्रम देखते देखते एक पुस्तक के कुछ पन्ने मेरी नजरो के सामने आने लगे. आज तक महात्मा गांधी के वध के बारे में इस तरह से जानकारी पेस कर रहा था मानो उसने कुछ नया शोध किया हो. उसने एक नाट्य रूपांतर पेस किया जिसका जिक्र 'फ्रीडम एट मीड नाईट' पुस्तक के आखरी पन्नो में फ्रेंच लेखक लेरी कोलिन्स और देमोनिक लेपियर ने किया है. ये एक नहीं दो लेखक है. जिन्होंने इस पुस्तक में भारतीय इतिहास का रस प्रद शैली में वर्णन किया है. उपन्यास की तरह लिखी गयी इस पुस्तक के हीरो है महात्मा गांधी. मै पुस्तक की तारीफ बिलकुल भी नहीं करना चाहता और न प्रचार करना चाहता हु.
आज तक वही दिखा रहा था जो इस पुस्तक में उल्लेखित है. पुस्तक की तरह चेनल ने भी वो नहीं दिखाया जो दिखाना चाहिए. महात्मा की हत्या की साजिश पेश की गई वजह नहीं. उन तथ्यों को नज़र अंदाज़ कर दिया गया जिसकी वजह से नाथू राम गोडसे ने इस वध कर्म को अंजाम दिया था. ये कभी सामने लायेंगे भी नहीं और हमें अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए. दिमाग घूम जाता है जब इस पुस्तक में वीर सावरकर के ऊपर तथ्य हीन आरोप लगाकर गन्दी भाषा का प्रयोग किया जाता है. मैंने एक गुजराती ब्लॉग में भी देखा था की उन महाशय ने उन पन्नो में से कोपी कर के अपने ब्लॉग में पोस्ट डाल दी मानो कोई बहोत बड़ा शोध किया हो.
वीर सावरकर और गांधी जी के बीच कोई तुलना हो ही नहीं शकती, ये संभव ही नहीं है. वो वीर और विद्वान् है और हमेशा रहेंगे. सावरकर ने जितना लिखा है उतना तो महात्मा ने पढ़ा भी नहीं होगा.सावरकर ने जो यातनाए सही है वो महात्मा ने सही होती तो नाथू राम को फांसी पर लटकाना नहीं पड़ता. काश इस राष्ट्र ने महात्मा के चरखे के बजाय सावरकर के शस्त्र को अपनाया होता, तो आज ये आज तक और कल तक और परसोतक और विदेश लेखक हमारे वीर पुरुषो की धज्जीया नहीं उडा पाते.