ગુરુવાર, 17 જાન્યુઆરી, 2013

गाय की जिवंत समाधि और बन गया मंदिर : 125 सालो से अखंड ज्योत प्रज्वलित



हिन्दुओमे गाय परम पवित्र है। ये आस्था है की गौ माता स्वरूप है और उसमे सभी देवताओ के अंश विद्यमान है। गाय की पूजा होती है। गाय के दूध को अमृत माना जाता है और गौ जरन भी परम पवित्र है। गौ जरन के उपयोग से बहोत सी बीमारिया दूर होती है और वातावरण में शुद्धता आ जाती है ये तो अब विज्ञान भी मानने लगा है। हमारे पुराणो और धर्म ग्रंथो में भी गाय के गुण गान गाये गए है। गौ रक्षा प्रत्येक हिन्दू की परम पवित्र    फर्ज है ऐसे संस्कार प्रत्येक हिन्दू को बचपन से ही मिल जाते है। उसमे छत्रपति शिवाजी महाराज हो या वर्त्तमान में गौ रक्षा की जिम्मेदारी उठाने वाले हिन्दू संगठन। विधर्मियो से गौ को बचने के हर संभव प्रयास होते है। इसी तरह गुजरात के बनासकांठा जिले के शिहोरी में गौमाता भक्ति के स्वरूप में स्थापित है। ये मंदिर कहा जाता है की 125 सालो पुराना है। इसके पीछे एक घटना जुडी हुई है। सत्य मानो या दंतकथा मगर यहाँ के लोग बरसों से गौ माता को पूजते रहे है।

माना जाता है की वर्तमानमे जहा मंदिर खड़ा है वहा खुला मैदान था और आसपास में खेत - खलियान। इससे जुडी कथा में ये कहा जाता  है के तकरीबन 100 या 125 साल पहेले गायने इस जगह पर समाधि ली थी। इस तरह जिवंत समाधि लेने की वजह यह थी की उसके मालिकने उसे धुत्कार दिया था। गौ के आँचल से दूध निकलते समय दूध निकाल रहे व्यक्ति की मुह से ये शब्द निकल पड़े थे - 'तुजे मौत भी नहीं आती' बस ये शब्द सुनते ही गाय ने वहा से छलांग लगाईं और गाव से निकलकर खेते खलियानों की तरफ भागने लगी। उस जगह दो दिन तक बिना खाए पिए वह खड़ी रही जहा आज गौ की याद में मंदिर बना हुआ है। गाय की इस असह्य स्थिति को देखकर वहा के तत्कालीन पुलिस अफ़्सरने गाय को कुछ खिलाने की कोशिश की मगर गायने कुछ नहीं खाया। लोगो को इकट्ठा करके मिन्नतें के मगर गाय अपने इरादों से विचलित नहीं हुई। इतने में ही धरती ने मार्ग किया और गौ ने वहा पर जिवंत समाधि ले ली। और फिर पुलिस अफसर की जद्दो जहद से वहा पर गौ माता का मंदिर निर्मित हुआ। कहा जाता है की संतान के लिए तरस रहे अफसर को गौ माता के आशीर्वाद के फल स्वरूप दो पुत्र प्राप्त हुए। तब से यहाँ गौ माता के प्रति द्वैत भक्ति की भावना जागृत हुई है। सालो से मंदिर के गर्भ गृह में अखंड ज्योत प्रज्वल्लित है। लोग ये मानते है की किसी दैवी शक्ति के रूप में गौ माता ने अवतार लिया था और अपनी लीला रची थी। गौ रक्षा और गौ सेवा का भी संकेत समजते है।


                                                           
गुजरात में ये स्थान इतना प्रचलित नहीं है। स्थानिय निवासियों तक सिमित इस मंदिर और गौ सेवा समिति द्वारा हर साल नौ रात्रि के दिनों में चंदा इकठ्ठा करके मेले का आयोजन किया जाता है। मेला पूर्णिमा तक चलता है। पूर्णिमा के दिन मंदिर में आसपास के साधू संयासियो की उपस्थिति में होम हवन भी होता है। गाय के नाम से यहाँ विविध उत्पादों द्वारा प्रचार का कार्य कार्य और अन्य कोई प्रवृत्ति नहीं होती। बस आस्था से यहा उपासना और आराधना होती है।


















एक दूसरी भी प्रथा है यहा बैल न बनाने की। इस वजह से यहाँ सांड की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। आये दिन
यहाँ सांडो की भगदड़ होती रहती है। मेले में भी ये भगदड़ हो चुकी है।  प्रस्तुत कथा और ये सांडो की वृद्धि के बिच में क्या कनेक्सन है ये अभी तक कुछ सिद्ध नहीं हुआ है। मगर यहाँ के लोगो की आस्था को अवश्य मानना पड़ेगा।



2 ટિપ્પણીઓ: